लखनऊ और फैज़: अतुल तिवारी “हज़रात! ये जलसा हमारी अदब की तारीख़ में एक यादगार वाक़या है। हमारे सम्मेलनों,अंजुमनों में – अब तक, आम तौर पर – ज़ुबान और उसकी अशात अत से बहस की जाती रही