Mouzu-e-Sukhan by Faiz Ahmead Faiz मौज़ू-ए-सुखन गुल हुई जाती है अफ़सुर्दा सुलगती हुई शाम धुल के निकलेगी अभी चश्म-ए-माहताब से रात और मुश्ताक निगाहों की सुनी जाएगी और उन